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नई कविता की प्रमुख प्रवृत्तियाँ
शब्द संस्कार के प्रति सजग रहते हुए मानसिक जटिलताओं की काव्यमयी सृष्टि “नई कविता” है। नई कविता एक नई मनःस्थिति का एक प्रतिबिम्ब है । मानव जाति और सृष्टि मात्र के संबंधों के परिपार्ख में मानव और मानवजाति का नया संबंध नई कविता की मूल विशिष्टता है। नई कविता में मानव का दो रुपों में चित्रण किया गया है - एक रुप में मानव व्यक्ति पर आग्रह है, दुसरे रुप में मानव समष्टि पर आग्रह है। नया कवि क्षणवादी जीवन दर्शन को अंगीकार करता है। निम्नलिखित पंक्तियों का केन्द्रीय स्वर यही क्षणवादिता है -----
“आओ हम उस अतीत के भूलें
और आज की अपनी रग-रग के अंतर को छू लें
छू लें इसी क्षण
क्योंकि कल के वे नहीं रहे
क्योंकि कल हम भी नहीं रहेंगे”।।
व्दितीय महायुध्द के बाद उत्पन्न भीषण परिस्थितियों के बीच आज का कवि उस व्यक्ति को चित्रित करता है जिसमें समाज की सारी प्रगतिशील-शक्तियाँ केंन्द्रीय भूत हो गई हों। नई कविता में पुरातन परंपराओं के प्रति कोई विशेष आस्था नहीं है। इस धारा का कवि उन्हें आज का संघर्षपूर्ण जीवन की अभिव्यक्ति के लिए अपर्याप्त समझता है। परिणामतः प्रस्तुत धारा में आज का सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक, और राजनीतिक परंपराओं से व्याप्त मानवीय जीवन के प्रति उदासीनता, निराशा और अविश्वास की भावनाएँ अधिक उभरी हुई हैं ।
नई कविता में आधुनिक युगबोध व आधुनिक सौंदर्य बोध की जोरों से दुहाई दी जाती हैं। प्रायः आलोचकों ने दोष लगाया हैं कि नई कविता में रस नहीं होता और उसमें साधारणीकरण की मात्रा भी नही होती है किंतु यह आरोप सर्वांश रुप से सत्य नही है। “रघुवीर सहाय” की छोटी-सी कविता “बात बोलेगी” मौलिकता, तीव्रता, गहरी संवेदना, भाव-संवेदना स्वर तथा व्यापक प्रयोगशीलता का एक उत्तम उदाहरण है --------
“बात बोलेगी हम नहीं
भेद खोलेगी बात ही”।
नई कविता की भाषा सरल, छोटे वाक्य़ों, सुबोध नया प्रचलित शब्दों - यहाँ तक कि आंग्रेजी के शब्दों, मुहावरों और कहावतों आदि सी परिपूर्णता होती है। आज का कवि अपने को समझने के साथ भविष्य के प्रति आशापूर्ण है, व्यापक सत्य की व्यंजना करने की चेष्टा करता है और सामाजिक यथार्थ के प्रति जागरुक भी है।
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