Friday 13 April 2012

" कहूँ याद करती "


" कहूँ याद करती "

सारी रस्में निभाने की चाहत गज़ब थी ।
तुमको मगर मैं तो भूली ही कब थी ?

है बाहर समझ से करूँ याद क्यों मैं ?
उन यादों के मंज़र से निकली ही कब थी ?

बंद आँखों से देखूं तो मिलता सुकूँ है ।
मिला जो मुझे उसकी चाहत ही कब थी ?

तेरी परछाइयों से भी उल्फत है मुझको ।
यूँ भी बेज़ार तुमसे हुई मैं ही कब थी ?

याद तेरी जो दिल में इनायत से कम क्या ?
याद करती कुसुम जिसे भूली ही कब थी ?

- कुसुम ठाकुर -

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